top of page

मैनेजमेंट गुरु - " कृष्णा "

  • Writer: Sameer Giri
    Sameer Giri
  • Dec 27, 2022
  • 18 min read

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।1।। परित्राणाय साधू मं विनाशाय चदुष्कुताम्। धर्म संस्थापनार्र्थाय सम्भवामि युगे युगे।।2।। श्रीमद्भगवतगीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि जब-जब विश्व में धर्म की हानि होगी, तब-तब अधर्म का नाश करने तथा धर्म की स्थापना हेतु मैं पृथ्वी पर अवतार लूंगा। स्पष्ट है कि

? यदि श्रीकृष्ण लीला की घटनाओं का विश्लेषण किया जाए तो उनमें से प्रत्येक आधुनिक मैनेजमेंट गुरुओं के लिए शोध का विषय हो सकती है। धर्मग्रंथों में श्रीकृष्ण की लीलाओं को अलौकिक मानते हुए उन्हें ‘ईश्वरीय’ मानकर उनका वर्णन किया गया है परंतु ऐसी प्रत्येक लीला वास्तव में श्रीकृष्ण द्वारा तार्किक ढंग से घटनाक्रम को अपने पक्ष में मोडऩे की कार्यवाही थी, जिससे सफलता का प्रतिशत शत-प्रतिशत था।


१) आप भी टीम का हिस्सा हैं

उपरोक्त श्लोक को हम कॉर्पोरेट में लेते हैं , आप बेशक प्रशाशक /प्रबंधक हैं आपकी टीम किसी आपदा (Stress ) से गुजर रही है तो नकारात्मक प्रभाव आपके ऊपर आना ही है , एक अच्छे लीडर का यह कर्त्तव्य है की सफलता का श्रेय सबको दें और विफलता की जिम्मेदारी खुद ले. अतः "ये मेरा काम नहीं है " वाली मानसिकता को निकाल कर आप अपना शत प्रतिशत दें ! हमेशा ध्यान रखें "Knowledge is Power..." और इसके साथ ही "Power Gives Responsibilities.. "


२) अख्खड़ छवि से बाहर निकालें भारतीय संस्कृति के महानायक कृष्ण-जितने रंग इनके व्यक्तित्व के हैं उतनेऔर किसी के भी नहीं हैं, कभी माखन चुराता नटखट बालक तो कभी प्रेम में आकंठडूबा हुआ प्रेमी जो प्रेयसी की एक पुकार पर सबके विरुद्ध जाकर उसे भगा लेजाता है। कभी बांसुरी की तान में सबको मोहने वाला तो कभी सच्चे सारथी केरूप में गीता का उपदेश देता ईश्वर। ऐसे ना जाने कितने ही रंग कृष्ण केव्यक्तित्व में समाए हैं। कृष्ण की हर लीला, हर बात में जीवन का सार छुपाहै। कृष्ण के जीवन की हर घटना में एक सीख छुपी है। ठीक इसी तरह , रोबीले टाइप वाले बॉस की छवि निकलिए , अपने चेहरे पर विजयी मुस्कान हमेशा रखें , अपने कलीग्स , Customers , और Subordinates से नम्रता से पेश आएं , ऐसा महसूस हो जैसे वो अपने किसी खास दोस्त से बाते कर रहे हैं !


३) दंड जरूरी है लेकिन क्षमा पहले महाभारत की संपूर्ण कथा में अनेक अवसरों पर श्रीकृष्ण ने प्रबंधन कीविभिन्न तकनीकों का परिचय दिया। युधिष्ठिर के राजतिलक के अवसर परआद्य-पूज्य के रूप में श्रीकृष्ण का नाम सुझाए जाने पर शिशुपाल रुष्ट होकरगाली देने लगे। श्रीकृष्ण ने उसकी सभी गालियों को धैर्यपूर्वक सुना तथा उसेबताया कि वे उसके सौ अपराधों तक उसे क्षमा करेंगे। इसके बाद उसकी हर गालीके साथ ही वे शिशुपाल को सावधान करते रहे तथा सौ गालियां पूरी होने परउन्होंने उसे शांत होने को कहा परंतु उसके न रुकने पर श्रीकृष्ण ने अपनेचक्र से उसका मस्तक काट दिया। प्रबंधन में रहते हुए प्रबंधक को सबसे बड़ी समस्या Manpower Management को लेकर हो सकती है कर्मचारी हर तरह के होते हैं , अच्छे भी और बुरे भी। शिशुपाल की तरह उद्दण्ड तथाअक्षम सहायक को भी क्षमा करना चाहिए तथा बार-बार उसे आगाह करते रहना चाहिएपरंतु जब वह सीमा पार करने लगे और दण्ड देने के अतिरिक्त कोई चारा न हो तोऐसा दण्ड दिया जाना चाहिए जो दूसरों के लिए भी उदाहरण का काम करे।प्रशासक/प्रबंधक को कार्य हित को देखते हुए जहां विशाल हृदय होना चाहिए, वहीं आवश्यकता पडऩे पर दण्ड देते समय अनुशासन को बनाए रखने के दृष्टिकोण सेकिसी तरह की कोमलता भी नहीं दिखानी चाहिए। साथ ही जनसामान्य में यह संदेशजाना चाहिए कि कठोर दण्ड केवल विधिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए दिया गयाहै, न कि किसी व्यक्तिगत प्रतिशोध के लिए। वास्तव में ऐसा ही हुआ था औरयुधिष्ठिर के राजतिलक की सभा में अव्यवस्था फैलाने वाले तत्व शांत होकरकार्यवाही में सहयोग करने लगे थे।


४) अपने विषय का ज्ञाता बने अभिमन्यु वध के उपरांत अर्जुन ने -‘कल सायंकाल तक या तो जयद्रथ का वधकरूंगा अन्यथा जलती हुई चिंता पर चढ़ जाऊंगा’ की भीषण प्रतिज्ञा की।दुर्योधन की रक्षा पंक्ति को भेंद न पाने के कारण अर्जुन आत्मदाह के लिएतैयार था। तमाशा देखने के लिए जयद्रथ भी वहां था। श्रीकृष्ण ने अर्जुन सेकहा कि जिस गाण्डीव को तुमने आजीवन अपने साथ रखा है, उसे हाथ में चिता परभी लिए रहो। इतने में ही सूर्य की किरण चमकी और ज्ञात हुआ कि अभी सूर्यास्तनहीं हुआ है। श्रीकृष्ण के इशारे पर अर्जुन ने जयद्रथ का सिर काट दिया।जयद्रथ को अपने पिता से वरदान प्राप्त था कि जो उसका सिर काटकर भूमि परगिराएगा, वह मृत्यु को प्राप्त होगा। श्रीकृष्ण को इस शाप का भी ज्ञान थाऔर उन्होंने अर्जुन से कहा कि तीर मारकर जयद्रथ के सिर को निकट ही तपस्याकर रहे उसके पिता के पास पहुंचा दे। जयद्रथ के पिता का ध्यान भंग हुआ औरउसने प्रतिक्रिया वश अपनी गोद में पड़े जयद्रथ के सिर को भूमि पर फेंक दियातथा उसकी भी मृत्यु हो गई। श्रीकृष्ण ने गणना से यह जान लिया था कि उस समयपूर्ण सूर्यग्रहण पडऩे वाला है तथा वे जयद्रध के पिता के वरदान के विषयमें भी जानते थे। किसी भी प्रबंधक के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने क्षेत्रके अतिरिक्त विभिन्न क्षेत्रों के विषय में जितनी अधिक जानकारी रखेगा, वहउतना ही सफल प्रबंधन तथा अपनी टीम का मार्गदर्शन कर सकेगा। ‘knowledge is power’ के आधुनिक सूत्र का यह ज्वलंत उदाहरण है।


५ ) अहम को हावी ना होने दें प्रबंधन में प्राय: चुनौती आती है, जब बहुत सारे लोग अपनी-अपनी प्रतिष्ठाऔर अपने अहं को लेकर अड़ जाते हैं तो समस्या जटिल हो जाती है। सभी कीप्रतिष्ठा बनी रहे तथा समस्या का समाधान भी हो जाए, यह कुशल प्रबंधक के बसका ही काम होता है। श्रीकृष्ण ने अपनी इस प्रतिभा का अनेक अवसरों पर परिचयदिया। युद्ध में एक अवसर पर घायल होने पर युधिष्ठिर ने अर्जुन के गांडीव कोबुरा-भला कहा। अर्जुन का यह प्रण था कि जो उसके गाण्डीव को अपशब्द कहेगा, वे उसका वध कर देंगे। जब अर्जुन संध्या के समय युद्ध शिविर में वापस आए तोउन्हें भी युधिष्ठिर के इस क्रोध का पता चला। प्रण के अनुसार उन्हेंगाण्डीव का अपमान करने वाले का वध करना था परंतु बड़े भ्राता की हत्या? इसधर्म संकट में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि - ‘‘वे महाराज युधिष्ठिर काअपमान करें क्योंकि छोटे द्वारा बड़े का अपमान उसकी हत्या के समान ही होताहै।’’ तत्पश्चात अर्जुन ने महाराज के चरणों पर गिरकर क्षमा मांग ली तथाभविष्य में और शक्ति के साथ युद्ध करने का प्रण लिया। इस प्रकार सभी के अहंतथा प्रतिज्ञाओं की रक्षा हो सकी तथा विपरीत परिस्थितियों को उन्होंनेसकारात्मक ऊर्जा (Positive energy) में बदल दिया।


६) टीम आपकी है , आप टीम के महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण ने अर्जुन का सारथी होना स्वीकार किया था।साथ ही अस्त्र न उठाने का वादा भी किया था परंतु युद्ध के छठे दिन जब भीष्मपितामह पाण्डव सेना के दस सहस्त्र सैनिकों का प्रतिदिन वध कर रहे थे औरपाण्डवों को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने अपनीप्रतिज्ञा तोड़कर रथ का पहिया उठाकर भीष्म पर आक्रमण का प्रयास किया।अर्जुन ने दौड़कर श्रीकृष्ण को पकड़ा तथा अधिक सावधानी से युद्ध करने काप्रण किया। नेतृत्व क्षमता का यह अप्रतिम उदाहरण है। जब अपना दल शिथिल होरहा हो तथा कार्य न कर पा रहा हो, तब नेता का यह कत्र्तव्य है कि वहव्यक्तिगत मानसिकता से ऊपर उठकर किसी भी सीमा तक प्रयास करें ताकि उसकेसाथी उससे प्रेरणा लेकर बेहतर प्रदर्शन करें। एक मैनेजर , टीम का मार्गदर्शक (सारथि )होता है, अश्वचालन(बेस-वोर्क )से लेकर युद्ध रणनीति (कॉर्पोरेट स्ट्रेटजी )सबका ज्ञान होता है , अतः टीम के कमजोर पड़ने पर अपना हुनर अवश्य दिखाएँ !


७) सुरक्षात्मक रहें कर्ण ने युद्ध में अर्जुन पर शक्ति का प्रयोग किया, तब वासुदेव ने अपने बल से रथ को दो अंगुल धरती में दबा दिया तथा कर्ण की शक्ति अर्जुन का शिरस्त्राण लेकर चली गई। अपने विपक्षी के बलाबल की पूरी जानकारी होना तथा समय रहते उससे प्रतिरक्षा के उपाय करना भी उत्तम प्रबंधन का अंग है। श्रीकृष्ण ने यह करके प्रबंधन के इस आयाम में अपनी सिद्धहस्तता का परिचय दिया। प्रबंधक अगर सेल्स की फ़ील्ड्स से है तो उसके लिए अतिआवशयक है की प्रतिद्विंदी कंपनियों की marketing स्ट्रेटजी का अध्ययन करें, अगर कीमत का विषय है तो गुणवत्ता को बरकरार रखते हुए रेट को कम करें , यह मार्जिन को कम करते हुए भी किया जा सकता है , याद रखे प्रोडक्ट एक बार ब्रांड बनने के बाद बहुत बिज़नेस देगा।


८) प्रस्तिथियां प्रतिकूल हैं तो , दूसरा रास्ता अपनाएँ

श्रीकृष्ण का एक नाम ‘रणछोड़’ भी है। भागवत में कथा है कि कालयवन का बल देखकर श्रीकृष्ण ने युद्ध का मैदान छोड़ दिया था तथा रणक्षेत्र छोड़कर चले गए थे। कालयवन ने इनका पीछा किया। कृष्ण उसे वहाँ तक ले गये जहाँ सूर्यवंशी मुचुकुन्द सो रहा था। मुचुकुन्द को यह वर मिला था कि जो कोई उन्हें सोते से उठायेगा वह उनकी दृष्टि पड़ते ही भस्म हो जायगा। कृष्ण ने ऐसा किया कि कालयवन मुचुकुन्द द्वारा भस्म कर दिया गया। सामान्य रूप से इसे कायरता कहा जाएगा परंतु यहां श्रीकृष्ण ने सिद्ध किया कि यदि अपने संसाधन कम हों तो अपनी बची हुई शक्ति की रक्षा करके कार्य को दूसरे तरीके से भी किया जा सकता है

प्रबंधन के इस मूलभूत सिद्धांत का पालन न करके मध्यकालीन भारत के राजा अनेकों बार विदेशी आक्रांताओं से पराजित हुए तथा देश लंबे समय तक विदेशी शासन से कराहता रहा। यदि श्रीकृष्ण की ‘Tactical sestet’ की नीति इन शासकों ने अपनाई होती तो संभवत: भारत का इतिहास अलग ही होता।


९) आपदा नियंत्रण


श्रीकृष्ण की बाल्यावस्था की घटना, जिसके कारण वे ‘गिरिघट’ कहलाए, उनके आपदा प्रबंधन तथा पर्यावरण के प्रति उनकी चिंता को इंगित करती है। कथा यह है कि गोवर्धनवासियों द्वारा पूजा न करने से इंद्रदेव रुष्ट हो गए तथा उस क्षेत्र में उन्होंने भीषण वर्षा कर दी। श्रीकृष्ण ने गोकुलवासियों को इस अतिवृष्टि से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठिका पर छत्र की भांति उठा लिया तथा सभी ग्रामवासियों की रक्षा की। श्रीकृष्ण ने ही गोकुलवासियों को गोवर्धन पर्वत का पूजन करने को कहा था क्योंकि वह पर्वत उस क्षेत्र के पर्यावरण की रक्षा करता है और वर्षा होने पर भी गोवर्धन पर्वत से ही ग्रामीणों की रक्षा भी हुई। श्रीकृष्ण पर्यावरण संरक्षण तथा उससे होने वाले लाभों से भली-भांति परिचित थे। अतिवृष्टि से रक्षा करके श्रीकृष्ण ने समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व की पूर्ति की। सर्वागीण प्रबंधन का एक आयाम यह भी है कि वह समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का समुचित निर्वहन भी करें।





१०) प्रबंधन का आदर्श : कर्म पहले है

महाभारत के युद्ध के आरंभ में ही पितामाह, गुरु, ज्ञातिजन तथा संबंधियों को देखकर अर्जुन के अंग शिथिल हो गए और उसने युद्ध करने से इन्कार कर दिया। यदि आपकी टीम का मुख्य कार्यकत्र्ता ही कार्य करने में स्वयं को अक्षम महसूस करें तो निश्चयही यह चिंता का विषय होगा। श्रीकृष्ण की प्रबंधकीय कुशलता का सर्वोत्तम प्रदर्शन ‘श्रीमद्भागवतगीता’ के उपदेश के रूप में हुआ है। भारतीय धर्मग्रंथ होने के साथ ही गीता जहां भारतीय षड्दर्शन का कोष है, वहीं गीता अपने संसाधन को प्रेरित करने (resource mobilization) की विधियों का भी खजाना है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ‘निष्काम कर्म’ का उपदेश दिया, वह वास्तव में परिणामपरक result oriented के स्थान पर कार्यपरक (test oriented) दृष्टिकोण अपनाने को कहते हैं। यदि कार्य को पूर्ण करने में मनोयोग से प्रयास करें, जो हमारे वश में हैं, तो परिणाम की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह हमारे वश में नहीं है। इसमें अन्तर्निहित तो यह है कि सफलता तो कार्य को भली-भांति करने पर मिल ही जाएगी। जन्म-मृत्यु, पुनर्जन्म, ईश्वर, कर्म, प्रारब्ध, सांख्य-योग, मीमांसा, द्वैत-अद्वैत आदि दार्शनिक पदों का प्रयोग श्रीकृष्ण ने अपने उपदेश में किया। इन्हें jargons कहा जाता है। मेरे विचार में श्रीमद्भागवतगीता विश्व का सबसे लंबी तथा सबसे प्रभावशाली प्रेरणात्मक उपदेश (motivational speech) है। ‘तस्मात उत्तिष्ठ कौन्तेय, युद्धाय कृत निश्चय:’ कहकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो प्रेरणा दी, उसी के बल पर पाण्डव 18 दिन के युद्ध में विजय प्राप्त कर हस्तिनापुर का राज्य जीत सके। इस संपूर्ण प्रकरण में बहुत कुछ दांव पर लगा था इसीलिए श्रीकृष्ण ने इस अवसर पर अपने प्रबंधन कौशल का प्रयोग पर दिया। गीता न केवल भारतीयों का धार्मिक गंथ है बल्कि ऐसा जीवनदर्शन है जो पस्त मनोबल वालों को जाग्रत करने का कार्य करता है। वह अकर्मण्यता की बात कहीं नहीं करते इसीलिए वे परम अलौकिक, ईश्वर तुल्य पूजनीय हैं। सामान्य शब्दों में कहा जाए तो वे प्रबंधन के आदर्श हैं। शिथिल मनोबल वाले सिपहसालारों को इस सीमा तक प्रेरित करना ही कि वे उठकर युद्ध करें तथा अपने से अधिक शक्तिशाली शत्रु को मार गिराएं। किसी बहुत बड़े नेता और प्रबंधक के ही वश की बात है।

११) विशेषाधिकार का प्रयोग विरलतम करें महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद अश्वत्थामा ने अर्जुन से युद्ध के समय बचने के लिए उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया ताकि पाण्डवों का समूल नाश हो जाए। उस समय श्रीकृष्ण ने गर्भस्थ शिशु की ब्रह्मास्त्र से रक्षा की तथा जन्म के समय मृत शिशु ‘परीक्षित’ को पुनर्जीवित भी कर दिया। वे स्वयं विष्णुजी के अवतार थे परंतु संपूर्ण जीवन में उन्होंने कहीं भी विधाता के बनाए नियमों को नहीं तोड़ा। ब्रह्मास्त्र के गरिमा को बनाये रखा तथा पाण्डवों के वंश का समूल नाश बचाने के लिए ही उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति का प्रयोग किया।

ठीक इसी तरह प्रबंधन में भी उच्च प्रबधन को अपने विशेषाधिकार का प्रयोग विरलतम स्थिति में ही करना चाहिए तथा संगठन के सामान्य संचालन के लिए जो नियम बने हैं, उनमें समय-समय पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए अन्यथा संपूर्ण व्यवस्था नष्ट हो जाएगी। श्रीकृष्ण ने इस सिद्धान्त का अविकल पालन किया ताकि विधाता द्वारा रचित सृष्टि में अव्यवस्था न फैले।

युद्ध के उपरांत उन्होंने देखा कि उनकी यादव सेना का अहंकार बहुत बढ़ गया है। श्रीकृष्ण ने ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दीं कि घमंडी और बलशाली यादव योद्धा आपस में ही लड़कर मर गए। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने यह सिद्ध कर दिया कि सर्वोच्च प्रबंधक का सर्वाधिक प्रिय और व्यक्तिगत अनुचर भी यदि अनुशासनहीन तथा उद्दंड हो रहा है तो उसे भी समुचित दण्ड देने में प्रबंधक को किसी प्रकार का पक्षपात नहीं करना चाहिए। व्यक्तिगत रुचि-अरुचि, संपूर्ण व्यवस्था की संरचना को बनाए रखने के लिए बलिदान भी करनी पड़े तो शासक को उससे पीछे नहीं हटना चाहिए। आधुनिक नेतृत्व के लिए यह और भी अधिक अनुकरणीय है। द्वौपदी के अक्षय-पात्र से शाक लेकर दुर्वासा के शाप से रक्षा हो अथवा ‘अश्वत्थामा हतो-नरो वा कुंजरो’ के कथन ने जोर का शंखनाद करना हो अथवा भीम द्वारा जरासंघा का वध हो - वे सभी घटनाएं श्रीकृष्ण द्वारा प्रबंधन की तकनीकों से विपरीत परिस्थितियों को अपने पक्ष में करने के उदाहरण हैं। नारायण स्वरूप श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में फैली अव्यवस्था के प्रबंधन के लिए ही जन्म लिया था तथा वे इस कार्य को सफलतापूर्वक करके विष्णु लोक को प्रस्थान कर गए। उनके द्वारा प्रयुक्त युक्तियों का एकमात्र भी हम जैसे मत्स्य प्राणियों को इस विश्व में उत्कृष्ट कोटि का प्रबंधक बना सकता है।


यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।1।। परित्राणाय साधू मं विनाशाय चदुष्कुताम्। धर्म संस्थापनार्र्थाय सम्भवामि युगे युगे।।2।। श्रीमद्भगवतगीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि जब-जब विश्व में धर्म की हानि होगी, तब-तब अधर्म का नाश करने तथा धर्म की स्थापना हेतु मैं पृथ्वी पर अवतार लूंगा। स्पष्ट है कि श्रीकृष्ण का जन्म विश्व में फैली दुव्यवस्था को ठीक करने के लिए ही हुआ था। इसे तकनीकी भाषा में 'crisis management' कहते हैं यानि कि ‘आपदा प्रबंधन’। क्या बिना प्रबंधन तकनीक जाने कोई प्रबंधन कर सकता है? यदि श्रीकृष्ण लीला की घटनाओं का विश्लेषण किया जाए तो उनमें से प्रत्येक आधुनिक मैनेजमेंट गुरुओं के लिए शोध का विषय हो सकती है। धर्मग्रंथों में श्रीकृष्ण की लीलाओं को अलौकिक मानते हुए उन्हें ‘ईश्वरीय’ मानकर उनका वर्णन किया गया है परंतु ऐसी प्रत्येक लीला वास्तव में श्रीकृष्ण द्वारा तार्किक ढंग से घटनाक्रम को अपने पक्ष में मोडऩे की कार्यवाही थी, जिससे सफलता का प्रतिशत शत-प्रतिशत था।


१) आप भी टीम का हिस्सा हैं

उपरोक्त श्लोक को हम कॉर्पोरेट में लेते हैं , आप बेशक प्रशाशक /प्रबंधक हैं आपकी टीम किसी आपदा (Stress ) से गुजर रही है तो नकारात्मक प्रभाव आपके ऊपर आना ही है , एक अच्छे लीडर का यह कर्त्तव्य है की सफलता का श्रेय सबको दें और विफलता की जिम्मेदारी खुद ले. अतः "ये मेरा काम नहीं है " वाली मानसिकता को निकाल कर आप अपना शत प्रतिशत दें ! हमेशा ध्यान रखें "Knowledge is Power..." और इसके साथ ही "Power Gives Responsibilities.. "


२) अख्खड़ छवि से बाहर निकालें भारतीय संस्कृति के महानायक कृष्ण-जितने रंग इनके व्यक्तित्व के हैं उतनेऔर किसी के भी नहीं हैं, कभी माखन चुराता नटखट बालक तो कभी प्रेम में आकंठडूबा हुआ प्रेमी जो प्रेयसी की एक पुकार पर सबके विरुद्ध जाकर उसे भगा लेजाता है। कभी बांसुरी की तान में सबको मोहने वाला तो कभी सच्चे सारथी केरूप में गीता का उपदेश देता ईश्वर। ऐसे ना जाने कितने ही रंग कृष्ण केव्यक्तित्व में समाए हैं। कृष्ण की हर लीला, हर बात में जीवन का सार छुपाहै। कृष्ण के जीवन की हर घटना में एक सीख छुपी है। ठीक इसी तरह , रोबीले टाइप वाले बॉस की छवि निकलिए , अपने चेहरे पर विजयी मुस्कान हमेशा रखें , अपने कलीग्स , Customers , और Subordinates से नम्रता से पेश आएं , ऐसा महसूस हो जैसे वो अपने किसी खास दोस्त से बाते कर रहे हैं !


३) दंड जरूरी है लेकिन क्षमा पहले महाभारत की संपूर्ण कथा में अनेक अवसरों पर श्रीकृष्ण ने प्रबंधन कीविभिन्न तकनीकों का परिचय दिया। युधिष्ठिर के राजतिलक के अवसर परआद्य-पूज्य के रूप में श्रीकृष्ण का नाम सुझाए जाने पर शिशुपाल रुष्ट होकरगाली देने लगे। श्रीकृष्ण ने उसकी सभी गालियों को धैर्यपूर्वक सुना तथा उसेबताया कि वे उसके सौ अपराधों तक उसे क्षमा करेंगे। इसके बाद उसकी हर गालीके साथ ही वे शिशुपाल को सावधान करते रहे तथा सौ गालियां पूरी होने परउन्होंने उसे शांत होने को कहा परंतु उसके न रुकने पर श्रीकृष्ण ने अपनेचक्र से उसका मस्तक काट दिया। प्रबंधन में रहते हुए प्रबंधक को सबसे बड़ी समस्या Manpower Management को लेकर हो सकती है कर्मचारी हर तरह के होते हैं , अच्छे भी और बुरे भी। शिशुपाल की तरह उद्दण्ड तथाअक्षम सहायक को भी क्षमा करना चाहिए तथा बार-बार उसे आगाह करते रहना चाहिएपरंतु जब वह सीमा पार करने लगे और दण्ड देने के अतिरिक्त कोई चारा न हो तोऐसा दण्ड दिया जाना चाहिए जो दूसरों के लिए भी उदाहरण का काम करे।प्रशासक/प्रबंधक को कार्य हित को देखते हुए जहां विशाल हृदय होना चाहिए, वहीं आवश्यकता पडऩे पर दण्ड देते समय अनुशासन को बनाए रखने के दृष्टिकोण सेकिसी तरह की कोमलता भी नहीं दिखानी चाहिए। साथ ही जनसामान्य में यह संदेशजाना चाहिए कि कठोर दण्ड केवल विधिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए दिया गयाहै, न कि किसी व्यक्तिगत प्रतिशोध के लिए। वास्तव में ऐसा ही हुआ था औरयुधिष्ठिर के राजतिलक की सभा में अव्यवस्था फैलाने वाले तत्व शांत होकरकार्यवाही में सहयोग करने लगे थे।


४) अपने विषय का ज्ञाता बने अभिमन्यु वध के उपरांत अर्जुन ने -‘कल सायंकाल तक या तो जयद्रथ का वधकरूंगा अन्यथा जलती हुई चिंता पर चढ़ जाऊंगा’ की भीषण प्रतिज्ञा की।दुर्योधन की रक्षा पंक्ति को भेंद न पाने के कारण अर्जुन आत्मदाह के लिएतैयार था। तमाशा देखने के लिए जयद्रथ भी वहां था। श्रीकृष्ण ने अर्जुन सेकहा कि जिस गाण्डीव को तुमने आजीवन अपने साथ रखा है, उसे हाथ में चिता परभी लिए रहो। इतने में ही सूर्य की किरण चमकी और ज्ञात हुआ कि अभी सूर्यास्तनहीं हुआ है। श्रीकृष्ण के इशारे पर अर्जुन ने जयद्रथ का सिर काट दिया।जयद्रथ को अपने पिता से वरदान प्राप्त था कि जो उसका सिर काटकर भूमि परगिराएगा, वह मृत्यु को प्राप्त होगा। श्रीकृष्ण को इस शाप का भी ज्ञान थाऔर उन्होंने अर्जुन से कहा कि तीर मारकर जयद्रथ के सिर को निकट ही तपस्याकर रहे उसके पिता के पास पहुंचा दे। जयद्रथ के पिता का ध्यान भंग हुआ औरउसने प्रतिक्रिया वश अपनी गोद में पड़े जयद्रथ के सिर को भूमि पर फेंक दियातथा उसकी भी मृत्यु हो गई। श्रीकृष्ण ने गणना से यह जान लिया था कि उस समयपूर्ण सूर्यग्रहण पडऩे वाला है तथा वे जयद्रध के पिता के वरदान के विषयमें भी जानते थे। किसी भी प्रबंधक के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने क्षेत्रके अतिरिक्त विभिन्न क्षेत्रों के विषय में जितनी अधिक जानकारी रखेगा, वहउतना ही सफल प्रबंधन तथा अपनी टीम का मार्गदर्शन कर सकेगा। ‘knowledge is power’ के आधुनिक सूत्र का यह ज्वलंत उदाहरण है।


५ ) अहम को हावी ना होने दें प्रबंधन में प्राय: चुनौती आती है, जब बहुत सारे लोग अपनी-अपनी प्रतिष्ठाऔर अपने अहं को लेकर अड़ जाते हैं तो समस्या जटिल हो जाती है। सभी कीप्रतिष्ठा बनी रहे तथा समस्या का समाधान भी हो जाए, यह कुशल प्रबंधक के बसका ही काम होता है। श्रीकृष्ण ने अपनी इस प्रतिभा का अनेक अवसरों पर परिचयदिया। युद्ध में एक अवसर पर घायल होने पर युधिष्ठिर ने अर्जुन के गांडीव कोबुरा-भला कहा। अर्जुन का यह प्रण था कि जो उसके गाण्डीव को अपशब्द कहेगा, वे उसका वध कर देंगे। जब अर्जुन संध्या के समय युद्ध शिविर में वापस आए तोउन्हें भी युधिष्ठिर के इस क्रोध का पता चला। प्रण के अनुसार उन्हेंगाण्डीव का अपमान करने वाले का वध करना था परंतु बड़े भ्राता की हत्या? इसधर्म संकट में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि - ‘‘वे महाराज युधिष्ठिर काअपमान करें क्योंकि छोटे द्वारा बड़े का अपमान उसकी हत्या के समान ही होताहै।’’ तत्पश्चात अर्जुन ने महाराज के चरणों पर गिरकर क्षमा मांग ली तथाभविष्य में और शक्ति के साथ युद्ध करने का प्रण लिया। इस प्रकार सभी के अहंतथा प्रतिज्ञाओं की रक्षा हो सकी तथा विपरीत परिस्थितियों को उन्होंनेसकारात्मक ऊर्जा (Positive energy) में बदल दिया।


६) टीम आपकी है , आप टीम के महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण ने अर्जुन का सारथी होना स्वीकार किया था।साथ ही अस्त्र न उठाने का वादा भी किया था परंतु युद्ध के छठे दिन जब भीष्मपितामह पाण्डव सेना के दस सहस्त्र सैनिकों का प्रतिदिन वध कर रहे थे औरपाण्डवों को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने अपनीप्रतिज्ञा तोड़कर रथ का पहिया उठाकर भीष्म पर आक्रमण का प्रयास किया।अर्जुन ने दौड़कर श्रीकृष्ण को पकड़ा तथा अधिक सावधानी से युद्ध करने काप्रण किया। नेतृत्व क्षमता का यह अप्रतिम उदाहरण है। जब अपना दल शिथिल होरहा हो तथा कार्य न कर पा रहा हो, तब नेता का यह कत्र्तव्य है कि वहव्यक्तिगत मानसिकता से ऊपर उठकर किसी भी सीमा तक प्रयास करें ताकि उसकेसाथी उससे प्रेरणा लेकर बेहतर प्रदर्शन करें। एक मैनेजर , टीम का मार्गदर्शक (सारथि )होता है, अश्वचालन(बेस-वोर्क )से लेकर युद्ध रणनीति (कॉर्पोरेट स्ट्रेटजी )सबका ज्ञान होता है , अतः टीम के कमजोर पड़ने पर अपना हुनर अवश्य दिखाएँ !


७) सुरक्षात्मक रहें कर्ण ने युद्ध में अर्जुन पर शक्ति का प्रयोग किया, तब वासुदेव ने अपने बल से रथ को दो अंगुल धरती में दबा दिया तथा कर्ण की शक्ति अर्जुन का शिरस्त्राण लेकर चली गई। अपने विपक्षी के बलाबल की पूरी जानकारी होना तथा समय रहते उससे प्रतिरक्षा के उपाय करना भी उत्तम प्रबंधन का अंग है। श्रीकृष्ण ने यह करके प्रबंधन के इस आयाम में अपनी सिद्धहस्तता का परिचय दिया। प्रबंधक अगर सेल्स की फ़ील्ड्स से है तो उसके लिए अतिआवशयक है की प्रतिद्विंदी कंपनियों की marketing स्ट्रेटजी का अध्ययन करें, अगर कीमत का विषय है तो गुणवत्ता को बरकरार रखते हुए रेट को कम करें , यह मार्जिन को कम करते हुए भी किया जा सकता है , याद रखे प्रोडक्ट एक बार ब्रांड बनने के बाद बहुत बिज़नेस देगा।


८) प्रस्तिथियां प्रतिकूल हैं तो , दूसरा रास्ता अपनाएँ

श्रीकृष्ण का एक नाम ‘रणछोड़’ भी है। भागवत में कथा है कि कालयवन का बल देखकर श्रीकृष्ण ने युद्ध का मैदान छोड़ दिया था तथा रणक्षेत्र छोड़कर चले गए थे। कालयवन ने इनका पीछा किया। कृष्ण उसे वहाँ तक ले गये जहाँ सूर्यवंशी मुचुकुन्द सो रहा था। मुचुकुन्द को यह वर मिला था कि जो कोई उन्हें सोते से उठायेगा वह उनकी दृष्टि पड़ते ही भस्म हो जायगा। कृष्ण ने ऐसा किया कि कालयवन मुचुकुन्द द्वारा भस्म कर दिया गया। सामान्य रूप से इसे कायरता कहा जाएगा परंतु यहां श्रीकृष्ण ने सिद्ध किया कि यदि अपने संसाधन कम हों तो अपनी बची हुई शक्ति की रक्षा करके कार्य को दूसरे तरीके से भी किया जा सकता है

प्रबंधन के इस मूलभूत सिद्धांत का पालन न करके मध्यकालीन भारत के राजा अनेकों बार विदेशी आक्रांताओं से पराजित हुए तथा देश लंबे समय तक विदेशी शासन से कराहता रहा। यदि श्रीकृष्ण की ‘Tactical sestet’ की नीति इन शासकों ने अपनाई होती तो संभवत: भारत का इतिहास अलग ही होता।


९) आपदा नियंत्रण


श्रीकृष्ण की बाल्यावस्था की घटना, जिसके कारण वे ‘गिरिघट’ कहलाए, उनके आपदा प्रबंधन तथा पर्यावरण के प्रति उनकी चिंता को इंगित करती है। कथा यह है कि गोवर्धनवासियों द्वारा पूजा न करने से इंद्रदेव रुष्ट हो गए तथा उस क्षेत्र में उन्होंने भीषण वर्षा कर दी। श्रीकृष्ण ने गोकुलवासियों को इस अतिवृष्टि से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठिका पर छत्र की भांति उठा लिया तथा सभी ग्रामवासियों की रक्षा की। श्रीकृष्ण ने ही गोकुलवासियों को गोवर्धन पर्वत का पूजन करने को कहा था क्योंकि वह पर्वत उस क्षेत्र के पर्यावरण की रक्षा करता है और वर्षा होने पर भी गोवर्धन पर्वत से ही ग्रामीणों की रक्षा भी हुई। श्रीकृष्ण पर्यावरण संरक्षण तथा उससे होने वाले लाभों से भली-भांति परिचित थे। अतिवृष्टि से रक्षा करके श्रीकृष्ण ने समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व की पूर्ति की। सर्वागीण प्रबंधन का एक आयाम यह भी है कि वह समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का समुचित निर्वहन भी करें।





१०) प्रबंधन का आदर्श : कर्म पहले है

महाभारत के युद्ध के आरंभ में ही पितामाह, गुरु, ज्ञातिजन तथा संबंधियों को देखकर अर्जुन के अंग शिथिल हो गए और उसने युद्ध करने से इन्कार कर दिया। यदि आपकी टीम का मुख्य कार्यकत्र्ता ही कार्य करने में स्वयं को अक्षम महसूस करें तो निश्चयही यह चिंता का विषय होगा। श्रीकृष्ण की प्रबंधकीय कुशलता का सर्वोत्तम प्रदर्शन ‘श्रीमद्भागवतगीता’ के उपदेश के रूप में हुआ है। भारतीय धर्मग्रंथ होने के साथ ही गीता जहां भारतीय षड्दर्शन का कोष है, वहीं गीता अपने संसाधन को प्रेरित करने (resource mobilization) की विधियों का भी खजाना है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ‘निष्काम कर्म’ का उपदेश दिया, वह वास्तव में परिणामपरक result oriented के स्थान पर कार्यपरक (test oriented) दृष्टिकोण अपनाने को कहते हैं। यदि कार्य को पूर्ण करने में मनोयोग से प्रयास करें, जो हमारे वश में हैं, तो परिणाम की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह हमारे वश में नहीं है। इसमें अन्तर्निहित तो यह है कि सफलता तो कार्य को भली-भांति करने पर मिल ही जाएगी। जन्म-मृत्यु, पुनर्जन्म, ईश्वर, कर्म, प्रारब्ध, सांख्य-योग, मीमांसा, द्वैत-अद्वैत आदि दार्शनिक पदों का प्रयोग श्रीकृष्ण ने अपने उपदेश में किया। इन्हें jargons कहा जाता है। मेरे विचार में श्रीमद्भागवतगीता विश्व का सबसे लंबी तथा सबसे प्रभावशाली प्रेरणात्मक उपदेश (motivational speech) है। ‘तस्मात उत्तिष्ठ कौन्तेय, युद्धाय कृत निश्चय:’ कहकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो प्रेरणा दी, उसी के बल पर पाण्डव 18 दिन के युद्ध में विजय प्राप्त कर हस्तिनापुर का राज्य जीत सके। इस संपूर्ण प्रकरण में बहुत कुछ दांव पर लगा था इसीलिए श्रीकृष्ण ने इस अवसर पर अपने प्रबंधन कौशल का प्रयोग पर दिया। गीता न केवल भारतीयों का धार्मिक गंथ है बल्कि ऐसा जीवनदर्शन है जो पस्त मनोबल वालों को जाग्रत करने का कार्य करता है। वह अकर्मण्यता की बात कहीं नहीं करते इसीलिए वे परम अलौकिक, ईश्वर तुल्य पूजनीय हैं। सामान्य शब्दों में कहा जाए तो वे प्रबंधन के आदर्श हैं। शिथिल मनोबल वाले सिपहसालारों को इस सीमा तक प्रेरित करना ही कि वे उठकर युद्ध करें तथा अपने से अधिक शक्तिशाली शत्रु को मार गिराएं। किसी बहुत बड़े नेता और प्रबंधक के ही वश की बात है।

११) विशेषाधिकार का प्रयोग विरलतम करें महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद अश्वत्थामा ने अर्जुन से युद्ध के समय बचने के लिए उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया ताकि पाण्डवों का समूल नाश हो जाए। उस समय श्रीकृष्ण ने गर्भस्थ शिशु की ब्रह्मास्त्र से रक्षा की तथा जन्म के समय मृत शिशु ‘परीक्षित’ को पुनर्जीवित भी कर दिया। वे स्वयं विष्णुजी के अवतार थे परंतु संपूर्ण जीवन में उन्होंने कहीं भी विधाता के बनाए नियमों को नहीं तोड़ा। ब्रह्मास्त्र के गरिमा को बनाये रखा तथा पाण्डवों के वंश का समूल नाश बचाने के लिए ही उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति का प्रयोग किया।

ठीक इसी तरह प्रबंधन में भी उच्च प्रबधन को अपने विशेषाधिकार का प्रयोग विरलतम स्थिति में ही करना चाहिए तथा संगठन के सामान्य संचालन के लिए जो नियम बने हैं, उनमें समय-समय पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए अन्यथा संपूर्ण व्यवस्था नष्ट हो जाएगी। श्रीकृष्ण ने इस सिद्धान्त का अविकल पालन किया ताकि विधाता द्वारा रचित सृष्टि में अव्यवस्था न फैले।

युद्ध के उपरांत उन्होंने देखा कि उनकी यादव सेना का अहंकार बहुत बढ़ गया है। श्रीकृष्ण ने ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दीं कि घमंडी और बलशाली यादव योद्धा आपस में ही लड़कर मर गए। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने यह सिद्ध कर दिया कि सर्वोच्च प्रबंधक का सर्वाधिक प्रिय और व्यक्तिगत अनुचर भी यदि अनुशासनहीन तथा उद्दंड हो रहा है तो उसे भी समुचित दण्ड देने में प्रबंधक को किसी प्रकार का पक्षपात नहीं करना चाहिए। व्यक्तिगत रुचि-अरुचि, संपूर्ण व्यवस्था की संरचना को बनाए रखने के लिए बलिदान भी करनी पड़े तो शासक को उससे पीछे नहीं हटना चाहिए। आधुनिक नेतृत्व के लिए यह और भी अधिक अनुकरणीय है। द्वौपदी के अक्षय-पात्र से शाक लेकर दुर्वासा के शाप से रक्षा हो अथवा ‘अश्वत्थामा हतो-नरो वा कुंजरो’ के कथन ने जोर का शंखनाद करना हो अथवा भीम द्वारा जरासंघा का वध हो - वे सभी घटनाएं श्रीकृष्ण द्वारा प्रबंधन की तकनीकों से विपरीत परिस्थितियों को अपने पक्ष में करने के उदाहरण हैं। नारायण स्वरूप श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में फैली अव्यवस्था के प्रबंधन के लिए ही जन्म लिया था तथा वे इस कार्य को सफलतापूर्वक करके विष्णु लोक को प्रस्थान कर गए। उनके द्वारा प्रयुक्त युक्तियों का एकमात्र भी हम जैसे मत्स्य प्राणियों को इस विश्व में उत्कृष्ट कोटि का प्रबंधक बना सकता है।



 
 
 

Comentarios


bottom of page